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M/S Sunray Auto Glass Private ... vs State Of U.P. And 2 Others

High Court Of Judicature at Allahabad|24 September, 2021

JUDGMENT / ORDER

प्रकरण का तथ्यात्मक प्रारूपः (क) उप श्रमायुक्त, नोएडा, उत्तर प्रदेश ने आदेश दिनांक 31.12.2003 के द्वारा, अभिनिर्णय हेतु, श्रम न्यायालय द्वितीय, गाजियाबाद, को निम्न औद्योगिक विवाद प्रेषित किया, जो शासनादेश दिनांक 25.10.2007 के द्वारा श्रम न्यायालय, उत्तर प्रदेश, नोएडा, गौतम बुद्ध नगर को स्थानान्तरित किया गया:
"क्या सेवायोजको द्वारा अपने श्रमिक श्री मनीराम पाल पुत्र श्री सुखपाल पद चौकीदार कम हेल्पर की सेवायें दिनांक 16-03-98 से समाप्त किया जाना उचित तथा/अथवा वैधानिक है यदि हॉ अथवा नहीं तो श्रमिक अपने सेवायोजको से क्या अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है और किस सीमा तक एवं अन्य किस विवरण सहित।"
(ख) श्रमिक पक्ष ने अपने लिखित कथन, दिनांक 18.02.2006, के द्वारा मुख्य रूप से कथन किया, कि वह विपक्षी के मौखिक आदेशाधीन दिनांक 02.05.1989, को वो चौकीदार-कम-हेल्पर के पद पर स्थायी रूप से नियोजित हुआ था परन्तु उसे दिनांक 16.03.1998 को मौखिक आदेशाधीन, उ०प्र० औद्योगिक अधिनियम 1947 की धारा 6-एन के अनुपालन किये बिना कार्य से पृथक/वंचित कर दिया गया। वो विपक्षी की एक वर्ष से अधिक की निरन्तर सेवा में 240 दिवस से अधिक की निरन्तर सेवा, "स्वच्छ सेवा रिकार्ड" के साथ पूर्ण कर चुका था तथा सेवा समाप्ति के बाद वो बेरोजगारी के कारण घोर आर्थिक संकट में रह रहा है।
(ग) सेवायोजक की ओर से लिखित कथन, दिनांक 11.02.2008 के द्वारा कथित किया गया कि, श्रमिक 02.05.1989 को हेल्पर कम चौकीदार के पद पर रू० 1794/- प्रतिमास वेतन पर नियोजित हुआ था, परन्तु उसका कार्य संतोषजनक नहीं रहा तथा इस संबंध में उसे चेतावनी भी दी गई थी। श्रमिक दिनांक 16.03.1998 से बिना किसी अनुमति व अपनी इच्छा से कार्य से विरत रहा। उसने सेवायोजक के पंजीकृत पत्र दिनांक 10.04.1998 का कोई उत्तर भी नहीं दिया, तदउपरांत रू० 1272/- का एक चैक, जिसका नम्बर 583690 था उसको एक पत्र दिनांक 12.06.1998 के संलग्न भेजा गया, परन्तु उसने उसको लेने से इंकार कर दिया। श्रमिक किसी बेहतर रोजगार मिलने के कारण अपनी इच्छा से सेवायोजक का रोजगार छोड़ कर चला गया था।
(घ) श्रमिक ने अपने प्रत्युत्तर में सेवायोजक के लिखित कथन को अस्वीकार किया व अपने लिखित कथन को दोहराया। इसी तरह से सेवायोजक ने अपने प्रत्युत्तर में श्रमिक के लिखित कथन को अस्वीकार करते हुए अपने लिखित कथन को दोहराया।
(ड़) श्रम न्यायालय ने श्रमिक पक्ष द्वारा प्रस्तुत डाक घर की स्थिति आख्या को मानते हुए सेवायोजक को नोटिस तामील होना मान लिया गया तथा सेवायोजक पक्ष की अनुुपस्थिति के कारण 11.12.2018 को सेवायोजक का अभिलेख दाखिल करने का अवसर समाप्त कर दिया। दिनांक 01.07.2019 को सेवायोजक का श्रमिक साक्षी से जिरह करने का तथा दिनांक 14.10.2019 को सेवायोजक का साक्ष्य का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया।
(च) इन परिस्थितयों में आक्षेपित अवार्ड दिनांक 02.12.2019 पारित किया गया जिसके मुख्य अंश निम्न हैंः "श्रमिक वादी का तर्क सुना गया उन्होने अपने तर्क में कहा कि वादी श्रमिक ने अपने कथन को अपने बयान एवं अभिलेखों से सिद्ध किया है। सेवायोजक ने पर्याप्त अवसर दिये जाने के बाद भी अपना कोई अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। श्रमिक ने अपने लिखित कथन एवं अभिलेखीय साक्ष्य में कहा है कि वह विपक्षी प्रतिष्ठान में दिनांक 02-05-1989 से चौकीदार कम हेल्पर के पद पर स्थायी रूप से नियोजित हुआ था और प्रतिवादी सेवायोजक ने दिनांक 16.03.1998 को नौकरी से निकाल दिया जिससे सिद्ध है कि उसने एक कलेन्डर वर्ष में 240 दिन से अधिक कार्य किया है। इस प्रकार मौखिक रूप से सेवाये समाप्त करना यू०पी०आई०डी०एक्ट की धारा 6 एन का उल्लंघन है। श्रमिक सेवा समाप्ति की तिथि से बेरोजगार रहा है। अतः उसे पूर्व पूर्ण वेतन व अन्य समस्त हित लाभों सहित सेवा में बहाल कराया जाये।
उक्त तर्क के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली का अवलोकन किया गया जिससे स्पष्ट है कि श्रमिक ने अपने बयान एवं अभिलेखों से यह सिद्ध किया है कि वह दिनांक 02.05.1989 से दिनांक 16.03.1998 तक सेवायोजकों के यहां कार्यरत रहा है जो एक कलेन्डर वर्ष में 240 दिन से ज्यादा की अवधि है। वादी श्रमिक की दिनांक 16.03.1998 को प्रतिवादी सेवायोजक द्वारा बिना घरेलू जॉच किये व आरोप पत्र दिये सेवाये समाप्त की गई है जो अवैधानिक है। सेवायोजको को पर्याप्त अवसर दिये जाने के बावजूद भी श्रमिक के कथन के विपरीत ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया है जिससे कि श्रमिक के कथन पर अविश्वास किया जाये। श्रमिक ने सेवा समाप्ति की तिथि से लगातार बेरोजगार रहा है का कथन किया है जो अन्यथा साक्ष्य के अभाव में सही माना जायेगा कि श्रमिक सेवा समाप्ति की तिथि से बेरोजगार है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर स्पष्टतः संबंधित श्रमिक की सेवाये दिनांक 16.03.1998 को अवैधानिक रूप से समाप्त की गयी है। श्रमिक वादी उक्त तिथि के बाद कही भी लाभकारी नियोजन में नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में श्रमिक वादी उक्त तिथि से पूर्व सेवा शर्तों/ लाभों के साथ पूर्ण बैकवेजेज व अन्य समस्त हित लाभों सहित सेवा में बहाल होने का अधिकारी है। तदनुसार संदर्भ श्रमिक के पक्ष में अभिनिर्णीत किया जाता है।" (रेखांकन न्यायालय द्वारा) (छ) सेवायोजक द्वारा एक प्रार्थना पत्र दिनांक 06.03.2020 को एकपक्षीय आदेश दिनांक 11.12.2018, 01.07.2019, 14.10.2019 व अवार्ड दिनांक 02.12.2019 को अपास्त करने के लिए दाखिल किया गया, कि नोटिस सेवायोजक के अधिकृत व्यक्ति को प्राप्त नहीं हुआ था। श्रमिक द्वारा इस प्रार्थना पत्र पर आपत्ति भी दाखिल की गयी कि डाक विभाग के स्थिति आख्या द्वारा नोटिस के तामील होने की पुष्टि होती है। श्रम न्यायालय ने आदेश दिनांक 15.01.2021 द्वारा उक्त प्रार्थना पत्र को निरस्त कर दिया कि, अवार्ड दिनांक 02.12.2019 को पारित होने के उपरान्त प्रकाशित भी हो गया, तदउपरान्त 06.03.2020 को उक्त प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया तथा दिनांक 08.03.2018 को जो नोटिस भेजा गया था उसकी प्राप्ति को, डाक विभाग द्वारा पुष्टि किया गया कि, वो 09.03.2018 को सेवा योजक को प्राप्त भी हो गया था तथा प्राप्त करने वाले का नाम व उसका चल दूरभाष का नम्बर भी अंकित था। अतः प्रार्थना पत्र स्वीकार करने का कोई आधार नहीं रहा।
2- सेवायोजक का पक्ष (क) श्री चन्द्र भान गुप्ता, प्रार्थी (सेवायोजक) के विद्वान अधिवक्ता ने कथन किया कि सेवायोजक को कभी भी नोटिस तामिल नहीं हुआ था और न हीं उस संदर्भ में कोई भी आदेश पत्रावली पर उपस्थित है। अगर दिनांक 08.03.2018 को भेजा गया नोटिस तामील हो गया होता, तो दिनांक 10.08.2018 या आगे किसी भी तिथि पर नोटिस तामील होने का आदेश पत्रावली पर अंकित होता। श्रमिक का पक्ष मात्र, उसके लिखित कथन पर मान लिया गया, जो गलत है। श्रमिक ने अपने पक्ष में कोई भी दस्तावेज, श्रम न्यायालय, के समक्ष उपलब्ध नहीं कराया। अतः श्रम न्यायालय का यह निष्कर्ष कि श्रमिक ने 240 दिन से अधिक कार्य एक कलेन्डर वर्ष में किया था, का आधार काल्पनिक व केवल अनुमान पर आधारित है।
(ख) श्रमिक के कथनानुसार उसको दिनांक 16.03.1998 को कार्य विरत करने का मौखिक आदेश पारित किया गया परन्तु श्रम न्यायालय को औद्योगिक विवाद 31.12.2003 को भेजा गया, अर्थात 5 वर्ष बाद, अतः इतने अधिक विलम्ब के कारण उस पर अभिनिर्णय नहीं लिया जाना चाहिये था।
(ग) वर्तमान में श्रमिक की आयु करीब 64 वर्ष है तथा उसका 1998 के उपरान्त निरन्तर बेरोगजार होने का कोई यथोचित कारण पत्रावली पर उपस्थित नहीं है। सेवा में पुनः नियुक्ति करने का आदेश पूर्ण रूप से गलत व अवैधानिक है तथा, पूर्ण बकाया वेतन देने का आदेश भी आधारहीन होने के कारण अपास्त होने योग्य है।
(घ) अधिवक्ता ने यह भी कथन किया कि पूर्ण बकाया वेतन न दे कर, उचित एक मूश्त प्रतिकर भी दिया जा सकता था। सेवायोजक के विद्वान अधिवक्ता ने न्यायालय का ध्यान उच्चतम न्यायालय के निर्णय पी.वी.के. डिस्टीलरी लिमिटेड बनाम महेन्द्र राम, (2009) 5 एस.सी.सी.705 की ओर आकर्षित करवाया, जिसके अनुसार अगर श्रम न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि सेवा नियोजक ने श्रमिक की सेवायें निरस्त नहीं करी है तो विवाद की निस्तारण की प्रक्रिया वहीं रोक देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पुनः नियुक्ति व पूर्ण बकाया वेतन का आदेश स्वतः नहीं हो सकता है।
3- श्रमिक का पक्ष (क) श्री शेखर श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता ने श्रमिक का पक्ष रखा तथा कथन किया कि डाक विभाग द्वारा जारी किये गये प्रमाण पत्र से पूर्णतः विदित है कि, सेवायोजक को नोटिस तामील हो गया था तथा वो अपनी इच्छानुसार अपना पक्ष न रखने के लिए जिम्मेदार है। श्रम न्यायालय ने श्रमिक के कथन व प्रकरण के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए विधिक रूप से अवार्ड पारित किया है, अतः उसमें किसी भी तरह से हस्तक्षेप करने का न तो कोई आधार है न ही कोई आवश्यक्ता है। अधिवक्ता ने अपने कथन को बल देने के लिए निम्न विधिक दृष्टांत को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया; महक सिंह बनाम प्रसाईडिंग आफिसर इंडस्ट्रीयल ट्रिव्यूनल, 2005 (5) ए. डब्लू.सी.5147; प्रेम बहादुर दलेला बनाम उमेशराज बाली 2019(11) ए.डी.जे. 697; उत्तर प्रदेश शासन बनाम लेबर कोर्ट यू.पी. इलाहाबाद 2002 (4) ए. डब्लू.सी.3295; अरविन्द कुमार मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश शासन 2005 (5) ए. डब्लू.सी.4230; वासू इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश शासन 2019 (10) ए.डी.जे. 305; डिविजन फोरेस्ट आफिसर फोरेस्ट डिपार्टमेंट बनाम डिप्टी लेबर कमिश्नर कानपुर रिजन व अन्य (रिट सी. नम्बर 12954/2018 आदेश दिनांक 10.4.2018) और कथन किया कि नोटिस तामील होने के उपरान्त भी अपना पक्ष न रखने की दशा में श्रमिक के पक्ष को ध्यान में रखते हुए निर्णय देने में कोई विधिक त्रुटि नहीं है। श्रम विवाद, श्रमिक के हितों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित करना चाहिए। मौखिक रूप से कार्य से पृथक करना विधि विरूद्ध है। डाक विभाग द्वारा दी गई स्थिति आख्या, नोटिस तामिल होने का मान्य साक्ष्य है। अगर सेवायोजक अपना पक्ष या दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करता है तो उसके प्रतिकूल निर्णय लिया जा सकता है।
4- विश्लेषण (क) उपरोक्त वर्णित दोनों पक्षों के कथन व पत्रावली के सम्यक परिशीलन से यह विदित है कि डाक विभाग की स्थिति आख्या व नोटिस प्राप्त करने वाले का नाम व चल दूरभाष दर्ज होने के साक्ष्य से यह अविवादित हो जाता है, कि नोटिस सेवायोजक को तामील हो गया था। सेवायोजक ने नोटिस प्राप्त करने वाले का हस्ताक्षर विवादित नहीं किया है। सेवायोजक ने नोटिस तामील होने के बाद भी अपना पक्ष श्रम न्यायालय के समक्ष नहीं प्रस्तुत किया, अतः श्रम न्यायालय द्वारा श्रमिक का पक्ष मान लेने में कोई विधिक त्रुटि प्रतीत नहीं होती है। अतः वर्तमान प्रकरण मेें उ० प्र० औद्योगिक अधिनियम 1947 की धारा 6 एन का उलंघन हुआ है।
(ख) उपरोक्त तथ्यों में केवल एक बिन्दू है जो अब विचारणीय रह जाता है, कि क्या श्रम न्यायालय द्वारा श्रमिक की पुनः नियुक्ति व पूर्ण बकाया वेतन का आदेश, वर्तमान प्रकरण के तथ्य व परिस्थितियों में क्या उचित है, जबकि औद्योगिक विवाद 5 वर्ष बाद प्रेषित किया गया, श्रमिक प्रकरण के दौरान ही 58 वर्ष की आयु पार कर चुका है व ऐसा कोई ठोस साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है कि श्रमिक 1998 से 2019 व अब तक बिना किसी रोजगार के अपना जीवन यापन व्यतीत करता रहा है।
(ग) इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय का एक नवीन निर्णय जो रणवीर सिंह बनाम एक्सीक्यूटिव इंजीनियर पी०डब्लू०डी०, 2021 एस०सी०सी० अॉनलाइन एस०सी० 670 के मामले में पारित किया गया है, जो वर्तमान प्रकरण के तथ्यों में पूर्णतः उपयुक्त है, जहाँ उत्तराखंड शासन व अन्य बनाम राजकुमार (2019) 14 एस.सी.सी. 353 का आधार लेते हुए पुनः यह निर्धारित किया गया कि ऐसे प्रकरण में जहां धारा 6 एन का उल्लघंन हो तब भी पुनः नियोक्ति व पूर्ण बकाया वेतन का आदेश स्वतः पारित नहीं हो सकता है तथा उसके स्थान पर केवल एक मुश्त उचित प्रतिकर प्रदान करने का आदेश भी एक न्यायसंगत निदान हो सकता है। इस निर्णय के प्रस्तर 6 के प्रमुख अंश निम्न हैं:
".....जैसा कि अनुचित व्यापार व्यवहार के होने का कोई निष्कर्ष नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में हम सोचते है कि इस न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत, जिसे राज कुमार (उपरोक्त) के निर्णय में संदर्भित किया गया है, जिसका हमने उल्लेख भी किया है, का पालन करना अधिक उपयुक्त होगा। दूसरे शब्दों में, हमारा निष्कर्ष यह है कि पुनर्नियुक्ति स्वतः नहीं हो सकती है, धारा 25 एफ का उल्लंघन स्थापित हो चुका है, अतः उपयुक्त प्रतिकर उचित निदान रहेगा।"
(हिन्दी अनुवाद व रेखांकन न्यायालय द्वारा) 5- निष्कर्ष (क) उपरोक्त विशलेषण के संदर्भ में यह ध्यान में रखते हुए कि श्रमिक ने सेवायोजक के साथ केवल 9 वर्ष अस्थाई सहायक के रूप में कार्य किया व 1998 से 2019, जब आवार्ड पारित हुआ व आज तक ऐसा नहीं माना जा सकता कि इन 23 वर्षों तक श्रमिक ने कोई भी कार्य या रोजगार अपने जीवन यापन के लिए नहीं किया हो या इतने ज्यादा समय तक वो पुर्ण रूप से बेरोजगार रहा हो, तथा श्रमिक की आयु वर्तमान में 64 वर्ष का होना व उपरोक्त उल्लेखित विधि का सिद्धांत कि ऐसी परिस्थिति में पुनः नियुक्ति व पूर्ण बकाया वेतन का आदेश स्वतः नहीं हो सकता है, अतः पुनः नियोक्ति व पूर्ण बकाया वेतन के आदेश के स्थान पर श्रमिक को सेवायोजक द्वारा रूपये 3 लाख एक मुश्त प्रतिकर के रूप में प्रदान करने का आदेश देना न्यायोचित व न्यायसंगत रहेगा, जो प्रार्थी (सेवायोजक) विपक्षी (श्रमिक) को इस निर्णय की तिथि से 8 सप्ताह के अन्दर उसके द्वारा सूचित बैंक खाते में अन्तरित करेगा। अतः उक्त आदेश व निर्देश दिया जाता है।
(ख) अतः वर्तमान याचिका उपरोक्त निर्देशों के साथ आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है व आक्षेपित अवार्ड दिनांक 15.01.2021, उपरोक्त आदेश व निर्देशों के आधार पर अनुतोष का आदेश संशोधित किया जाता है।
आदेश दिनाँक:-24.09.2021 अवधेश (सौरभ श्याम शमशेरी, न्यायमूर्ति)
Disclaimer: Above Judgment displayed here are taken straight from the court; Vakilsearch has no ownership interest in, reservation over, or other connection to them.
Title

M/S Sunray Auto Glass Private ... vs State Of U.P. And 2 Others

Court

High Court Of Judicature at Allahabad

JudgmentDate
24 September, 2021
Judges
  • Saurabh Shyam Shamshery