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Shabir Khan vs State Of Uttar Pradesh

High Court Of Judicature at Allahabad|21 May, 2021

JUDGMENT / ORDER

वर्तमान में, कोरोना वैश्विक महामारी के कारणवश, यह प्रावकाश पीठ, केवल अप्रत्यक्ष प्रणाली (वर्चुअल मोड) के माध्यम से कार्य कर रही है।
2. आवेदक/अभियुक्त साबिर द्वारा वर्तमान जमानत प्रार्थना पत्र, अपराध संख्या 219/2021 धारा 2/3 उत्तर प्रदेश गिरोहबंद व समाज विरोधी क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम 1986 (संक्षेप में ''गिरोह बंद अधिनियम') थाना शमशाबाद, जिला आगरा में उसकी जमानत प्रार्थना पत्र संख्या 2018/2021 को विशेष न्यायाधीश (गिरोहबंद अधि)/अपर सत्र न्याायधीश, कक्ष संख्या 12, आगरा द्वारा पारित आदेश दिनांक 15.03.2021 द्वारा निरस्त किये जाने के, उपरान्त प्रस्तुत किया गया है।
अभियोजन कथानक
3. संक्षेप में अभियोजन कथानक इस प्रकार है कि वादी मुकदमा राकेश कुमार ने दिनांक 01.11.2020 को थाना शमशाबाद पर जुबानी प्रथम सूचना रिपोर्ट इस आशय की अंकित करायी कि श्री भगवान उर्फ राहुल पुत्र विद्याराम निवासी पल्टुआपुरा थाना निबोहरा, जनपद आगरा ने एक संगठित गिरोह बना रखा है जिसके करतार, सुरेश, रामहेत, साहब सिंह, आकाश वर्मा, साबिर खाँ (आवेदक) ये सभी गैंग के सदस्य है। इस गैंग का मुख्य कार्य जैसे जघन्य अपराध करके जनता में भय व्याप्त करके अपने भौतिक लाभ हेतु जनता में भय एवं आतंक व्याप्त कर जघन्य अपराध करते हुए धन अर्जित करते हैं जिनके विरुद्ध जनता का कोई भी व्यक्ति रिपोर्ट लिखवाने व गवाही देने के लिए तैयार नहीं होता। इनके विरुद्ध विभिन्न थानों पर कई मुकदमें पंजीकृत हैं। अतः इनके विरूद्ध समाज विरोधी क्रियाकलापो पर नियंत्रण रखने हेतु कार्यवाही किया जाना नितान्त आवश्यक है, इसके हेतु इनके विरुद्ध धारा 2/3 उ0प्र0 गिरोह बन्द एवं समाज विरोध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम 1986 के अंतर्गत अभियोग पंजीकृत कराया गया है।
आवेदक का पक्ष
4. श्री आशुतोष पांडेय, आवेदक के विद्वान अधिवक्ता द्वारा आवेदक की जमानत के लिए अपने निवेदन में प्रमुख्तया निम्न आधार निवेदित किये हैं:-
i. आवेदक समाज का शान्तिप्रिय व विधि को मानने वाला एक नागरिक है, उसे वर्तमान प्रकरण में झूठा फंसाया गया है।
ii. आवेदक के विरुद्ध गैंगचार्ट में जिन कुल 4 अपराधों का वर्णन किया गया, उसमें आवेदक को पूर्व में ही जमानत दी जा चुकी है तथा उनके आदेश, प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न किये गये है। आवेदक के अतिरिक्त 5 सह अभियुक्तों को भी संगठित गिरोह का सदस्य बताया गया है तथा छठवाँ सह अभियुक्त श्री भगवान को गिरोह का सरगना बताया गया है। अभियुक्त का किसी भी गिरोह से किसी भी प्रकार से संबंध नहीं है।
iii. आवेदक को उपरोक्त वर्णित 4 अपराधों के अतिरिक्त 6 अन्य अपराधों में भी झूठा फंसाया गया है, जिसका वर्णन आवेदन के प्रस्तर 8 में किया गया है तथा इन सभी अपराधों में भी आवेदक को पूर्व में ही जमानत दी जा चुकी है। आदेशों की प्रति आवेदन के साथ संलग्न है। इन आदेशों में सक्षम न्यायालय द्वारा कथित अपराधों में आवेदक की संलिप्ता को संदिग्ध माना है।
iv. आवेदक को बिना किसी ठोस साक्ष्य के आधार पर उपरोक्त वर्णित 9 आपराधिक प्रकरणों में कथित मात्र एक बरामदगी के आधार पर लिप्त किया गया है। न तो आवेदक के पास से कोई चोरी किया गया समान बरामद हुआ है और न ही कथित बरामदगी का किसी चोरी की घटना से प्रत्यक्ष संबंध दर्शाया गया है।
v. आवेदक एक गरीब आदमी है, जो अपने परिवार के जीवन याचन के लिए मजदूरी करता है। वो अपने परिवार का एक मात्र आय अर्जन करने वाला सदस्य है।
vi. प्रकरण के तथ्यात्मक परिस्थितियों के परिपेक्ष में, आवेदक अपराध का दोषी नहीं है तथा वो यह वचन देने को भी तैयार है कि अगर, उसको जमानत दी जाती है तो वो कोई भी अपराध नहीं करेगा। अतः वर्तमान जमानत प्रार्थना पत्र स्वीकार किया जाये।
राज्य का पक्ष
5. आवेदक के निवेदन का विरोध करते हुए अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता ने निम्न कथन किया:-
i. आवेदक अपने सह अभियुक्तों के संग एक संगठित गिरोह का सदस्य है, जिसका सरगना सह अभियुक्त श्री भगवान उर्फ राहुल है। जो जघन्य अपराध करके जनता में भय व्याप्त करके अपने भौतिक लाभ हेतु जनता में भय एवं आतंक व्याप्त करके जघन्य अपराध करते हुए धन अर्जित करते हैं, जिनके विरुद्ध जनता का कोई व्यक्ति रिपोर्ट लिखवाने व गवाही देने के लिये तैयार नहीं होता।
ii. आवेदक के विरुद्ध कुल 9 अपराधिक मुकदमें पंजीकृत है, जिसके यह प्रथम दृष्टया दृशित होता है, कि आवेदक एक अभ्यत अपराधी है, जो इस तरह के आपराधिक प्रकरणों में लिप्त है।
iii. गैंग चार्ट में वर्णित सभी अपराधों में आवेदक के पक्ष में जमानत का आदेश होना, वर्तमान प्रकरण में जमानत देने का एक मात्र आधार नहीं हो सकता है।
iv. गिरोहबंद अधिनियम की धारा 19(4) में प्रावधान है कि "उक्त अपराध के अंतर्गत यदि अभियुक्त अभिरक्षा में है, तो उसे तब तक जमानत पर नहीं छोड़ा जायेगा जब तक कि-(क) लोक अभियोजक को ऐसे छोड़ जाने के आवेदन का विरोध करने का अवसर नहीं दिया जाता और (ख) जहाँ लोक अभियोजन आवेदन का विरोध करता है, वहाँ न्यायालय का समाधान हो जाये कि यह विश्वास करने का युक्तियुक्त आधार है कि यह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और यह कि जमानत पर रहते समय उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।" वर्तमान प्रकरण में ऐसा कोई आधार नहीं है, जिससे इस न्यायालय को वांचित समाधान हो जाये। अतः वर्तमान जमानत पत्र निरस्त किया जाये।
जमानत की विधि 6 (i) विधि का सिद्धान्त है कि "जमानत नियम और जेल अपवाद है"। जमानत न तो किसी यांत्रिक आदेश से स्वीकार या अस्वीकार ही की जा सकती है, क्योंकि यह न केवल उस व्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है, जिसके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही चल रही है, परन्तु यह दण्ड न्याय प्रणाली के हित से भी संबंधित है और यह भी सुनिश्चित करना है, कि अपराध करने वालों को न्याय में बाधा डालने का अवसर न दिया जाये।
(ii) जमानत के लिए आवेदन पर विचार करते समय, न्यायालय को कुछ कारकों को ध्यान में रखना चाहिए, जैसे कि अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला का होना, आरोप की गंभीरता और प्रकृति, आरोप सिद्ध होने की स्थिति में सजा की कठोरता, अनुपूरक साक्ष्य की प्रकृति, न्यायालय की आरोप के लिये प्रथम दृष्टया संतुष्टि, आरोपी की हैसियत व पद, अभियुक्त की न्याय से भागने और अपराध को दोहराने की संभावना, साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ की संभावना, शिकायतकर्ता और गवाह को धमकी की आशंका और अपराधी का अपराधिक इतिहास जमानत के लिए आवेदन पर विचार करते समय, न्यायालय को मामले के अभियोजन पक्ष के गवाहों की विश्वसनीयता व स्थिरता के गुण-दोष की जांच सघनता से नहीं करनी चाहिए। क्योंकि यह केवल परीक्षण के दौरान ही जांचा जा सकता है। समता ज़मानत का एकमात्र आधार तो नहीं है, परन्तु यह उपरोक्त पहलुओं में से एक हो सकता है, जो अनिवार्य रुप से जमानत के आवेदन पर विचार करते समय विचारणीय होने चाहिए।
(iii) यह अविवादित है, कि जमानत देना या न देना, ये उस न्यायालय का विवेकाधिकार है, जो इस मामले की सुनवाई कर रहा है। हालांकि यह विवेकाधिकार निर्बाध है। परन्तु इसका उपयोग न्यायसंगत, मानवीय व सहानुभूति पूर्वक ही किया जाना चाहिए न कि मनमाने तरीके से। जमानत स्वीकार या अस्वीकार करने के आदेश में कारणों को प्रथम दृष्टया इंगित करना चाहिए, हालांकि गुण-दोष पर साक्ष्य की विस्तृत जांच और विस्तृत दस्तावेजीकरण को दर्शाने की आवश्यकता नहीं है। जमानत की शर्तें इतनी भी सख्त नहीं होनी चाहिए की उसका अनुपालन करना ही अक्षम हो जाये, जिससे ज़मानत ही काल्पनिक न हो जाये।
"गिरोहबंद अधिनियम" के अन्तर्गत जमानत की विधि 7(i) वर्तमान प्रकरण में आवेदक के विरुद्ध "गिरोहबंद अधिनियम" के अन्तर्गत अपराध पंजीकृत किया गया है। यह अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, जो निम्न उद्देश्य से अधिनियमित किया गया है :-
"गिरोहबंद और समाज-विरोधी क्रियाकलाप को रोकने और उनका सामना करने के लिए और उनसे सम्बद्ध या आनुषंगिक विषयों के लिए विशेष उपबंध करने के लिए अधिनियम"
(ii) गिरोह बन्द अधिनियम, जो एक विशेष अधिनियम है, के अन्तर्गत ज़मानत देने से पूर्व, सक्षम न्यायालय को दो स्थितियों पर समाधान करना अनिवार्य है, जो अधिनियम की धारा 19(4) में वर्णित हैं। संदर्भ के लिए धारा 19 निम्न उल्लेखित की जा रही है:-
"19. संहिता के कुछ उपबंधों को उपान्तरित रूप में लागू किया जाना- (1) संहिता में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गये किसी नियम के अधीन दण्डनीय प्रत्येक अपराध को संहिता की धारा 2 के खण्ड (ग) के अर्थान्तर्गत समझा जायेगा और "संज्ञेय मामले" का, जैसा उसे उस खण्ड में पारिभाषित किया गया है, तद्नुसार अर्थ लागाया जायेगा।
(2) संहिता की धारा 167, इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गये किसी विषय के अधीन दण्डनीय किसी अपराध वाले माले के सम्बन्ध में निम्नलिखित उपान्तरों के अधीन रहते हुए इस प्रकार लागू होंगे-
(क) उसकी उपधारा (1) में "न्यायिक मजिस्ट्रेट" के प्रति निर्देश का अर्थ "न्याायिक मजिस्ट्रेट या कार्यपालक मजिसट्रेट" के प्रति निर्देश के रूप में लगाया जायेगा, (ख) उसका उपधारा (2) में "पन्द्रह दिन", "नब्बे दिन" और "साठ दिन" जहां कहीं भी आये हों, के प्रति निर्देशों का अर्थ क्रमशः "साठ दिन", "एक वर्ष", और "एक वर्ष" के प्रति निर्देशों के रूप में लगाया जायेगा, (ग) उसकी उपधारा (2-क) निकाल दी गयी समझी जायेगी।
(3) संहिता की धारा 366,367,368 और 371 विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय अपराध वाले मामले के सम्बन्ध में इस उपान्तर के अधीन रहते हुए लागू होंगी कि उसमें "सेशन न्यायालय" जहां कहीं भी आया हो के प्रति निर्देश का अर्थ "विशेष न्यायालय" के प्रति निर्देश के रूप में लगाया जायेगा।
(4) संहिता में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गये किसी नियम के अधीन दण्डनीय अपारध से आरोपित किसी व्यक्ति को, यदि वह अभिरक्षा में है, जमानत पर या उसके अपने बन्ध-पत्र पर तब तक नहीं छोड़ा जायेगा, जब तक कि-
(क) लोक अभियोजक को ऐसे छोड़े जाने के आवेदन का विरोध करने का अवसर नहीं दिया जाता और (ख) जहां लोक अभियोजक आवेदन का विरोध करता है, वहां न्यायालय का समाधान हो जाये कि यह विश्वास करने का युक्ति युक्त आधार है कि यह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और यह कि जमानत पर रहते समय उसके द्वारा कोई अपराध करने की सम्भावना नहीं है।
(5) उपधारा (4) में विनिर्दिष्ट जमानत मंजूर करने के बारे में निर्बधन, संहिता के अधीन निर्बधनों के अतिरिक्त होंगे।"
(iii) धारा 19(4)(ख) को अधिनियमित करने का उद्देश्य अधिनियम के तहत जमानत आवेदनों पर विचार करने वाले न्यायालयों को दिशानिर्देश प्रदान करना है। यह इस तथ्य का संकेत है कि अधिनियम की धारा 3 के तहत दंडनीय अपराध गंभीर प्रकृति का है और इसलिए, न्यायालय को जमानत देने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह समाधान हो जाये कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हैं कि अभियुक्त इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और उसके जमानत पर रहते हुए कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
(iv) इस अधिनियम में जमानत के आवेदन का निस्तारण करते समय न्यायालय द्वारा इन परिस्थितियों को ध्यान मे रखा जाना चाहिए। इस प्रावधान का अनुपालन केवल एक औपचारिकता नहीं होना चाहिए, बल्कि न्यायालय को गिरोहबन्द अधिनियम के अंतर्गत ज़मानत याचिका पर विचार करते समय, इस प्रावधान का ध्यान अनिवार्य रूप से करना चाहिये तथा आदेश मे परिलक्षित भी होना चाहिए, चाहें वो संक्षिप्त ही क्यों न हो। इस प्रावधान को किसी भी दशा में अनदेखा नहीं किया जाना चाहिये।
(v) साथ ही साथ न्यायालय को सावधान भी रहना चाहिए कि इस अधिनियम के प्रावधानों का प्रतिशोध लेने के लिये, या निर्दोष नागरिकों को परेशान करने के लिये या डराने या राजनीतिक बदले के लिए या अन्य उत्पीडन करने के लिए, एक हथियार के रूप में इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा है और अगर ऐसा है तो ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
विश्लेषण 8(i) आवेदक ने प्रार्थना पत्र के प्रस्तर 7 व 8 में अपना आपराधिक इतिहास वर्णित करा है, जो निम्न है:-
(1) मु०अ०सं० 07/2020 अन्तर्गत धारा 411,413,414 भा०दं०सं० एवं 41/102 दं०प्र०सं० थाना समशाबाद, जिला आगरा।
(2) मु०अ०सं० 426/2019 अन्तर्गत धारा 413,414 भा०दं०सं० थाना अछनेरा, जिला आगरा।
(3) मु०अ०सं० 428/2019 अन्तर्गत धारा 413,414 भा०दं०सं० थाना अछनेरा, जिला आगरा।
(4) मु०अ०सं० 429/2019 अन्तर्गत धारा 413,414 भा०दं०सं० थाना अछनेरा, जिला आगरा।
(5) मु०अ०सं० 08/2019 अन्तर्गत धारा 413,414 भा०दं०सं० थाना जगनेर, जिला आगरा।
(6) मु०अ०सं० 308/2019 अन्तर्गत धारा 380,457,411 भा०दं०सं० थाना फतेहपुर सिकरी, जिला आगरा।
(7) मु०अ०सं० 145/2019 अन्तर्गत धारा 413,414 भा०दं०सं० थाना बसई अरेला, जिला आगरा (8)मु०अ०सं० 345/2019 अन्तर्गत धारा 411,414 भा०दं०सं० थाना बाह, जिला आगरा।
(9) मु०अ०सं० 419/2019 अन्तर्गत धारा 395,412 भा०दं०सं० थाना खन्दौली, जिला आगरा।
(ii) उपरोक्त से यह विदित होता है कि आवेदक एक अभ्यस्त अपराधी है जो एक ही प्रकार के अपराध कारित करने मे अभ्यस्त है। जैसा कि "गिरोह" व "गिरोहबंद" को क्रमशः "गिरोहबंद अधिनियम" की धारा 2(ख) व (ग) में परिभाषित किया गया है, आवेदक भी एक ऐसे गिरोह का सदस्य है, जो अकेल या सामूहिक रूप से समाज विरोधी क्रिया कलाप करता है, जो भारतीय दण्ड संहिता 1860 (भा०दं०सं०) के अध्याय 16 या अध्याय 17 या अध्याय 22 के अधीन दण्डनीय अपराध कारित करते है। यहाँ यह कहना उचित रखेगा कि आवेदक द्वारा कारित अपराध भा०दं०सं० के अध्याय 17 के अधीन दण्डनीय है। प्रथम दृष्टया वर्तमान स्थिति में इस न्यायालय को यह समाधान होने का कि यह विश्वास करने का कोई युक्ति युक्त आधार नहीं है कि आवेदक ऐसे अपराध का दोषी नहीं है। इसके विपरीत वर्तमान परिस्थितियों में, जैसा पूर्व में उल्लेखित किया है, यह युक्तियुक्त आधार है कि इस न्यायालय को यह समाधान हो सकता है, कि आवेदक ऐसे अपराध का दोषी है।
(iii) इसके अतिरिक्त आवेदक का एक विस्तृत आपराधिक इतिहास है, जिसके इस निष्कर्ष पर पहुँचने मे कोई दुविधा नहीं है कि वो एक अभ्यस्त अपराधी है। अतः ऐसा कोई युक्ति युक्त आधार नहीं है कि, इस न्यायालय को यह समाधान हो सके कि आवेदक जमानत पर रहते समय उसके द्वारा कोई अपराध करने की सम्भावना नहीं है। बल्कि आपराधिक इतिहास के दृष्टिगोचर इस बात की अधिक संभावना है कि आवेदक जमानत पर रहते समय इसी तरह के या अन्य अपराध पुनः कारित करेगा।
(iv) इसके अतिरिक्त आवेदक के पक्ष द्वारा यह निवेदन भी किया गया है कि आवेदक को गैंग तालिका में उल्लेखित चारों अपराधों में जमानत दी जा चुकी है अतः वर्तमान प्रकरण में केवल इसी आधार पर आवेदक जमानत का अधिकारी है इस तर्क को भी संबोधित करना आवश्यक है। जैसा पूर्व में कहा गया है कि गिरोहबन्द अधिनियम एक विशिष्ट अधिनियम है , जिसमें जमानत देने के संबंधित विशेष प्रावधान बनाये गये हैं, जो धारा 19(4)(ख) में वर्णित हैं। उन प्रावधानों का अनुपालन करे बिना इस अधिनियम के अंतर्गत जमानत नहीं दी जा सकती है। अधिनियम में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह प्रावधान दंड संहिता के अधीन जमानत मंजूर करने के बारे में दिये गये निबन्धनो के अतिरिक्त है, और जैसा पूर्व में जमानत की विधि का विश्लेषण किया गया है जिसमें जमानत मंजूर या नामंजूर करते समय कुछ कारको का ध्यान रखना आवश्यक है, उसमें अभियुक्त का अपराधिक इतिहास भी एक महत्वपूर्ण कारक है। आवेदक का यह तर्क आधारहीन है तथा किसी भी विधिक प्रावधान या विधिक दृष्टांत से समर्थित नहीं है। अगर आवेदक का यह तर्क मान लिया जाये तो गिरोहबन्द अधिनियम व धारा 19(4)(ख) का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि यह स्थिति जमानत मंजूर करने का एक कारक तो हो सकता है, परन्तु एकमात्र कारक नहीं हो सकता।
निष्कर्ष 9(i) उपरोक्त विश्लेषण का केवल एक ही निष्कर्ष है कि, गिरोहबंद अधिनियम की धारा 19(4)(ख) में वर्णित जमानत देने के पूर्व दो स्थितियों जिनका समाधान होना अनिवार्य है, वर्तमान प्रकरण में अनुपस्थित है तथा आवेदक का गैंग तालिका में वर्णित 4 आपराधिक प्रकरणों के अतिरिक्त उस पर5 आपराधिक मुकदमें और भी पंजीकृत है, यह कारक भी जमानत की प्रार्थना के प्रतिकूल है। अतः वर्तमान जमानत प्रार्थना पत्र निरस्त किये जाने योग्य है।
Disclaimer: Above Judgment displayed here are taken straight from the court; Vakilsearch has no ownership interest in, reservation over, or other connection to them.
Title

Shabir Khan vs State Of Uttar Pradesh

Court

High Court Of Judicature at Allahabad

JudgmentDate
21 May, 2021
Judges
  • Saurabh Shyam Shamshery